Very Good like always... Subject is facing the artist (person in the image is coming, earlier you had studied your subjects from behind)... a welcome change... This time there is no poem... only pencil, no pen !
कर्नाटक में ठिसरी मौनसून, बोलने लगी पैन्सिल की घिसन मौन गीली धरती के दर्पण में चिपक गया आसमान उलट कर. बूटों में गच्च-गच्च, पौन्चों में भारीपन. और सिर के ठीक ऊपर छाते में छन-छन.
Very Good like always... Subject is facing the artist (person in the image is coming, earlier you had studied your subjects from behind)... a welcome change... This time there is no poem... only pencil, no pen !
ReplyDeleteकर्नाटक में ठिसरी मौनसून,
ReplyDeleteबोलने लगी पैन्सिल की घिसन मौन
गीली धरती के दर्पण में
चिपक गया आसमान उलट कर.
बूटों में गच्च-गच्च,
पौन्चों में भारीपन.
और सिर के ठीक ऊपर
छाते में छन-छन.